देव उठानी एकादशी 2025: तारीख, शुभ मुहूर्त और देव उठानी एकादशी का महत्व

हिंदू मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी (जून/जुलाई) पर गहरी नींद (योग निद्रा) में चले जाते हैं और देव उठानी एकादशी (अक्टूबर/नवंबर) पर जागते हैं।

देव उठानी एकादशी 2025: देव उठानी एकादशी (जिसे प्रबोधिनी एकादशी या देवोत्थान एकादशी भी कहा जाता है) हिंदू धर्म के सबसे शुभ त्योहारों में से एक है। यह भगवान विष्णु के चार महीने की ब्रह्मांडीय नींद (चातुर्मास) के अंत और भारत में शादी और त्योहारों के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है।

देव उठानी एकादशी का अर्थ

“देव उठानी” का अर्थ है ‘देवताओं का जागना’।

“एकादशी” का अर्थ है चंद्र पखवाड़े का 11वां दिन।

हिंदू मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी (जून/जुलाई) पर गहरी नींद (योग निद्रा) में चले जाते हैं और देव उठानी एकादशी (अक्टूबर/नवंबर) पर जागते हैं।

इन चार महीनों (जिन्हें चातुर्मास के नाम से जाना जाता है) के दौरान, शादी, सगाई और बड़े धार्मिक समारोह जैसे शुभ कार्य स्थगित रहते हैं।

देव उठानी एकादशी सभी शुभ और धार्मिक समारोहों की फिर से शुरुआत का प्रतीक है – जिसमें प्रतीकात्मक तुलसी-शालिग्राम विवाह (देवी तुलसी और भगवान विष्णु का विवाह) भी शामिल है।

आध्यात्मिक महत्व: यह व्रत भक्ति, आत्म-नियंत्रण और आत्म-शुद्धि का प्रतीक है। माना जाता है कि इस व्रत को करने से मोक्ष, शांति और समृद्धि मिलती है।

ज्योतिषीय महत्व: यह साल की 24 एकादशियों में से एक है, जिसे विष्णु भक्तों के लिए सबसे फलदायी माना जाता है। माना जाता है कि सच्ची भक्ति सभी पापों को नष्ट कर देती है।

भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी (जून/जुलाई) पर गहरी नींद (योग निद्रा) में चले जाते हैं और देव उठानी एकादशी (अक्टूबर/नवंबर) पर जागते हैं

देव उठानी एकादशी की तारीख और शुभ समय

एकादशी तिथि शुरू: 1 नवंबर, 2025 – सुबह 09:11 बजे

एकादशी तिथि समाप्त: 2 नवंबर, 2025 – सुबह 07:31 बजे

पारण का समय (व्रत तोड़ने का समय): 2 नवंबर को सुबह 07:31 बजे के बाद

पूजा के लिए सबसे अच्छा मुहूर्त: 1 नवंबर, सुबह 08:00 बजे – सुबह 10:30 बजे

(स्थान और स्थानीय सूर्योदय/सूर्यास्त के समय के आधार पर तारीखें थोड़ी अलग हो सकती हैं।)

देव उठानी एकादशी का धार्मिक महत्व

यह ब्रह्मांड में दिव्य ऊर्जा के जागरण का प्रतीक है।

इस दिन से, शादी, सगाई, गृह प्रवेश और तीर्थयात्रा जैसी सभी शुभ गतिविधियां फिर से शुरू की जा सकती हैं।

यह आध्यात्मिक जागरण पर भी ज़ोर देता है – मनुष्यों को अज्ञानता से ऊपर उठने और अपने विश्वास को फिर से जगाने की याद दिलाता है।

देव उठानी एकादशी के मुख्य अनुष्ठान

व्रत और प्रार्थना

भक्त एकादशी का व्रत रखते हैं, अनाज, चावल और भारी भोजन से परहेज करते हैं।

वे तुलसी के पत्ते, अगरबत्ती, दीपक और भक्ति गीतों के साथ भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं।

तुलसी विवाह

इस दिन, भक्त तुलसी (पवित्र तुलसी) का भगवान विष्णु (शालिग्राम के रूप में) के साथ प्रतीकात्मक विवाह समारोह करते हैं।

यह हिंदू विवाह के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है।

देव उठानी अनुष्ठान

भगवान विष्णु को जगाने का एक प्रतीकात्मक कार्य:

भक्त “उठो देवा उठो” (जागो, हे भगवान) जैसे भजन गाते हैं।

वे जागरण का प्रतीक करने के लिए फूल, मिठाई चढ़ाते हैं और शंख बजाते हैं।

देव उठानी एकादशी का आध्यात्मिक संदेश

विष्णु का जागरण दुनिया में धार्मिकता और संतुलन के पुनरुद्धार का प्रतिनिधित्व करता है।

यह सिखाता है कि आध्यात्मिक विकास चक्रीय है – जागरण (कार्य) के बाद आराम (आत्मनिरीक्षण)।

यह दिन भक्तों को अपने जीवन में अनुशासन, करुणा और भक्ति को फिर से जगाने के लिए प्रेरित करता है। पूरे भारत में उत्सव

उत्तर भारत (यूपी, बिहार, राजस्थान)

तुलसी विवाह मंदिरों और घरों में अनुष्ठानों और सजावट के साथ मनाया जाता है।

महाराष्ट्र और गुजरात

इसे देव उठानी ग्यारस के नाम से जाना जाता है – लोग भगवान विष्णु के लिए सजावटी मिट्टी के बिस्तर बनाते हैं।

दक्षिण भारत

भक्त उपवास और विष्णु पूजा करके उत्थान द्वादशी मनाते हैं।

वृंदावन और मथुरा

तुलसी और विष्णु के दिव्य मिलन का प्रतीक भव्य उत्सव प्रमुख मंदिरों में आयोजित किए जाते हैं।

पारंपरिक शुभकामनाएँ

“इस देव उठानी एकादशी पर, भगवान विष्णु आपके जीवन में सुख, समृद्धि और शांति जगाएँ।”

“देव उठानी एकादशी पर, आइए हम भी देवताओं के जागने के साथ भक्ति जगाएँ और अच्छे काम करें।”

“देव उठानी एकादशी की शुभकामनाएँ – आपका जीवन दिव्य प्रकाश और नई ऊर्जा से भर जाए।”

मंत्र:
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

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