ज्योतिष और विज्ञान की नजर में शनि
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से खगोल विज्ञान के अनुसार शनि (शनि) का व्यास 120500 किमी है, 10 किमी प्रति सेकंड की औसत गति से यह ग्रह औसत दूरी पर रहकर सूर्य की परिक्रमा 29 वर्ष में पूरी करता है। सूर्य से डेढ़ अरब किलोमीटर की दूरी पर।
ज्योतिष के अनुसार शनि ग्रह का प्रभाव
लाल किताब के जानकारों के अनुसार शनिग्रह एक ऐसा ग्रह है, जिसका प्रभाव पृथ्वी के सभी प्रकार के लौह तत्वों पर देखने को मिलता है। हमारे शरीर में आयरन भी मौजूद होता है। इसके अलावा शनि दृष्टि, बाल, नक्षत्र, भौहें और कनपटियों को भी प्रभावित करता है।
जिस प्रकार चंद्रमा का प्रभाव पृथ्वी के जल तत्व पर होता है उसी प्रकार शनि का प्रभाव लोहे, तेल और सभी प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले काले और नीले रंग की वस्तुओं पर होता है। इनमें भैंस, भैंस, कीकर, आक, खजूर, काले जूते, मोजा आदि गिने जाते हैं। शनि का यह प्रभाव शुभ भी है और अशुभ भी। व्यक्ति या स्थान के स्वभाव का उस पर समान प्रभाव पड़ता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि शनिग्रह कहीं रोहिणी-शकट को भेद जाए तो पृथ्वी पर 12 वर्ष का घोर अकाल पड़ जाएगा और प्राणियों का जीवित रहना कठिन हो जाएगा। यह योग महाराजा दशरथ के समय में आया था। इस योग के प्रभाव से राज्य की जनता संकट में थी। भीषण सूखा पड़ा था।
यदि किसी व्यक्ति पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा हो तो लाल किताब के अनुसार व्यक्ति को भगवान भैरव की शरण में जाना चाहिए या अपने आहार और व्यवहार में परिवर्तन कर कुछ उपाय करना चाहिए।
अशुभ संकेत
शनि के अशुभ प्रभाव से मकान या मकान का कोई भाग गिर जाता है या क्षतिग्रस्त हो जाता है, नहीं तो कर्ज या झगड़ों के कारण मकान बिक जाता है। अंगों के बाल तेजी से झड़ते हैं। अचानक आग लग सकती है। धन, संपत्ति का किसी भी प्रकार से नाश होता है। समय से पहले दांत और आंखों की कमजोरी।
अच्छा संकेत
यदि शनि की स्थिति शुभ हो तो व्यक्ति हर क्षेत्र में उन्नति करता है। उसके जीवन में किसी भी प्रकार का कोई कष्ट नहीं होता है। बाल और नाखून मजबूत बनते हैं। ऐसा जातक न्यायप्रिय होता है और समाज में उसका बहुत सम्मान होता है।