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अनादि काल से सूर्य सहित संपूर्ण ब्रह्मांड ‘ओम’ का जाप कर रहा है

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Neelkikalam

ऋषि कहते हैं, ॐ की यह ध्वनि परमात्मा तक पहुँचने का माध्यम है। यह उसका नाम है। महर्षि पतंजलि कहते हैं ‘तस्य वाचकः प्रणव’ अर्थात ईश्वर का नाम प्रणव है। प्रणव का अर्थ है ‘ओम’।

अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) के वैज्ञानिकों ने कई शोधों के बाद एक ऐसी ध्वनि रिकॉर्ड की है जो गहरे अंतरिक्ष में यंत्रों द्वारा सूर्य में प्रतिक्षण उत्पन्न होती है। उस ध्वनि को सुनकर वैज्ञानिक चकित रह गए, क्योंकि यह ध्वनि और कुछ नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति की वैदिक ध्वनि ‘ओम’ (ॐ) थी। यह ठीक वैसा ही लगता है जब हम ‘ओम’ कहते हैं। इस मन्त्र की स्तुति केवल वेदों में ही नहीं, अपितु हमारे अन्य ग्रन्थों में भी की गई है।

आश्चर्य इस बात का था कि जिस गहरी ध्वनि को मनुष्य अपने कानों से नहीं सुन सकता, उसे हमारे ऋषि-मुनियों ने कैसे सुन लिया। एक सामान्य व्यक्ति केवल 20 मेगा हर्ट्ज़ से 20 हज़ार मेगा हर्ट्ज़ तक की ध्वनि ही सुन सकता है। यह हमारे कानों की सुनने की शक्ति है। उससे नीचे या ऊपर की आवाज सुनाई नहीं देती। इन्द्रियों की एक सीमा होती है, वे उससे कम या अधिक कोई सूचना नहीं दे सकतीं।

वैज्ञानिकों का आश्चर्य वास्तव में समाधि की उच्च अवस्था का चमत्कार था जिसमें ऋषियों ने उस नाद को सुना, महसूस किया और वेदों के प्रत्येक मंत्र के आगे लिख दिया और उसे ‘महामंत्र’ कहा। ऋषि कहते हैं, ॐ की यह ध्वनि परमात्मा तक पहुँचने का माध्यम है। यह उसका नाम है। महर्षि पतंजलि कहते हैं ‘तस्य वाचकः प्रणव’ अर्थात ईश्वर का नाम प्रणव है। प्रणव का अर्थ है ‘ओम’।

अब प्रश्न उठता है कि सूर्य में यह ध्वनि क्यों हो रही है? इसका उत्तर गीता में दिया गया है। भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं – योग का जो ज्ञान मैंने तुम्हें दिया था, वह मैंने प्रारंभ में सूर्य को दिया था। देखा जाए तो अनादि काल से सूर्य केवल ‘ओम’ का जाप करते हुए निरंतर चमक रहा है। यह जप सूर्य ही नहीं, सारा ब्रह्मांड कर रहा है।

ऋषियों ने कहा था कि इस ध्वनि को ध्यान में अनुभव किया जा सकता है, लेकिन कानों से नहीं सुना जा सकता। इस ध्वनि को शिव की शक्ति या उनके डमरू से निकलने वाली प्रथम ध्वनि कहते हैं, यही अनहद नाद है। ब्रह्मांड में ही नहीं, हमारी चेतना की अंतरतम गहराइयों में भी यह ध्वनि गूंज रही है।

जब हम ‘ओम’ का जाप करते हैं तो सबसे पहले मन विचारों से खाली होता है। उसके बाद भी जब यह जप चलता रहता है तो साधक के जप की आवृत्ति उस ब्रह्मांड में गूंजने वाली ‘ॐ’ की ध्वनि की आवृत्ति के बराबर हो जाती है। उस समय साधक साधना की गहराइयों में चला जाता है। इस अवस्था को एकत्व या समाधि या अद्वैत कहा जाता है। इस अवस्था में मन चेतना से विलीन हो जाता है।

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