शालीग्राम (Shaligram) एक प्रकार का जीवाश्म पत्थर है, जिसका प्रयोग परमेश्वर के प्रतिनिधि के रूप में भगवान #विष्णु जी (Vishnuji) का आह्वान करने के लिए किया जाता है। शालीग्राम आमतौर पर पवित्र नदी की तली या किनारों से एकत्र किया जाता है। शिव भक्त पूजा करने के लिए शिव लिंग के रूप में लगभग गोल
शालीग्राम (Shaligram) एक प्रकार का जीवाश्म पत्थर है, जिसका प्रयोग परमेश्वर के प्रतिनिधि के रूप में भगवान #विष्णु जी (Vishnuji) का आह्वान करने के लिए किया जाता है। शालीग्राम आमतौर पर पवित्र नदी की तली या किनारों से एकत्र किया जाता है। शिव भक्त पूजा करने के लिए शिव लिंग के रूप में लगभग गोल या अंडाकार शालिग्राम का उपयोग करते हैं।
वैष्णव (हिन्दू) पवित्र नदी गंडकी में पाया जाने वाला एक गोलाकार, आमतौर पर काले रंग के एमोनोइड जीवाश्म को भगवान विष्णु के प्रतिनिधि के रूप में उपयोग करते हैं। #शालीग्राम को प्रायः ‘शिला’ कहा जाता है। शिला शालिग्राम का छोटा नाम है जिसका अर्थ “पत्थर” होता है। शालीग्राम भगवान विष्णु का ही एक प्रसिद्ध नाम है। इस नाम की उत्पत्ति के सबूत नेपाल के एक दूरदराज़ के गाँव से मिलते है जहां विष्णु को शालीग्रामम् के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू धर्म में शालीग्राम को सालग्राम के रूप में जाना जाता है। शालीग्राम का सम्बन्ध सालग्राम नामक गाँव से भी है जो #गंडक नामक नदी के किनारे पर स्थित है तथा यहां से ये पवित्र पत्थर भी मिलता है।
पद्मपुराण के अनुसार
गण्डकी अर्थात नारायणी नदी के एक प्रदेश में शालिग्राम स्थल नाम का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है; वहाँ से निकलनेवाले पत्थर को शालिग्राम कहते हैं। शालिग्राम शिला के स्पर्शमात्र से करोड़ों जन्मों के पाप का नाश हो जाता है। फिर यदि उसका पूजन किया जाय, तब तो उसके फल के विषय में कहना ही क्या है; वह भगवान के समीप पहुँचाने वाला है।
- बहुत जन्मों के पुण्य से यदि कभी गोष्पद के चिह्न से युक्त श्रीकृष्ण शिला प्राप्त हो जाय तो उसी के पूजन से मनुष्य के पुनर्जन्म की समाप्ति हो जाती है।
- पहले शालिग्राम-शिला की परीक्षा करनी चाहिये; यदि वह काली और चिकनी हो तो उत्तम है। यदि उसकी कालिमा कुछ कम हो तो वह मध्यम श्रेणी की मानी गयी है। और यदि उसमें दूसरे किसी रंग का सम्मिश्रण हो तो वह मिश्रित फल प्रदान करने वाली होती है। जैसे सदा काठ के भीतर छिपी हुई आग मन्थन करने से प्रकट होती है, उसी प्रकार भगवान विष्णु सर्वत्र व्याप्त होने पर भी शालिग्राम शिला में विशेष रूप से अभिव्यक्त होते हैं।
- जो प्रतिदिन द्वारका की शिला-गोमती चक्र से युक्त बारह शालिग्राम मूर्तियों का पूजन करता है, वह वैकुण्ठ लोक में प्रतिष्ठित होता है।
- जो मनुष्य शालिग्राम-शिला के भीतर गुफ़ा का दर्शन करता है, उसके पितर तृप्त होकर कल्प के अन्ततक स्वर्ग में निवास करते हैं।
- जहाँ द्वारकापुरी की शिला- अर्थात गोमती चक्र रहता है, वह स्थान वैकुण्ठ लोक माना जाता है; वहाँ मृत्यु को प्राप्त हुआ मनुष्य विष्णुधाम में जाता है।
- जो शालग्राम-शिला की क़ीमत लगाता है, जो बेचता है, जो विक्रय का अनुमोदन करता है तथा जो उसकी परीक्षा करके मूल्य का समर्थन करता है, वे सब नरक में पड़ते हैं। इसलिये शालिग्राम शिला और गोमती चक्र की ख़रीद-बिक्री छोड़ देनी चाहिये।
- शालिग्राम-स्थल से प्रकट हुए भगवान शालिग्राम और द्वारका से प्रकट हुए गोमती चक्र- इन दोनों देवताओं का जहाँ समागम होता है, वहाँ मोक्ष मिलने में तनिक भी सन्देह नहीं है।
- द्वारका से प्रकट हुए गोमती चक्र से युक्त, अनेकों चक्रों से चिह्नित तथा चक्रासन-शिला के समान आकार वाले भगवान शालिग्राम साक्षात चित्स्वरूप निरंजन परमात्मा ही हैं। ओंकार रूप तथा नित्यानन्द स्वरूप शालिग्राम को नमस्कार है।
शालिग्राम स्वरूप
जिस शालिग्राम-शिला में द्वार-स्थान पर परस्पर सटे हुए दो चक्र हों, जो शुक्ल वर्ण की रेखा से अंकित और शोभा सम्पन्न दिखायी देती हों, उसे भगवान श्री गदाधर का स्वरूप समझना चाहिये।
- संकर्षण मूर्ति में दो सटे हुए चक्र होते हैं, लाल रेखा होती है और उसका पूर्वभाग कुछ मोटा होता है।
- प्रद्युम्न के स्वरूप में कुछ-कुछ पीलापन होता है और उसमें चक्र का चिह्न सूक्ष्म रहता है।
- अनिरुद्ध की मूर्ति गोल होती है और उसके भीतरी भाग में गहरा एवं चौड़ा छेद होता है; इसके सिवा, वह द्वार भाग में नील वर्ण और तीन रेखाओं से युक्त भी होती है।
- भगवान नारायण श्याम वर्ण के होते हैं, उनके मध्य भाग में गदा के आकार की रेखा होती है और उनका नाभि-कमल बहुत ऊँचा होता है।
- भगवान नृसिंह की मूर्ति में चक्र का स्थूल चिह्न रहता है, उनका वर्ण कपिल होता है तथा वे तीन या पाँच बिन्दुओं से युक्त होते हैं। ब्रह्मचारी के लिये उन्हीं का पूजन विहित है। वे भक्तों की रक्षा करनेवाले हैं।
- जिस शालिग्राम-शिला में दो चक्र के चिह्न विषम भाव से स्थित हों, तीन लिंग हों तथा तीन रेखाएँ दिखायी देती हों; वह वाराह भगवान का स्वरूप है, उसका वर्ण नील तथा आकार स्थूल होता है। भगवान वाराह भी सबकी रक्षा करने वाले हैं।
- कच्छप की मूर्ति श्याम वर्ण की होती है। उसका आकार पानी की भँवर के समान गोल होता है। उसमें यत्र-तत्र बिन्दुओं के चिह्न देखे जाते हैं तथा उसका पृष्ठ-भाग श्वेत रंग का होता है।
- श्रीधर की मूर्ति में पाँच रेखाएँ होती हैं, वनमाली के स्वरूप में गदा का चिह्न होता है।
- गोल आकृति, मध्यभाग में चक्र का चिह्न तथा नीलवर्ण, यह वामन मूर्ति की पहचान है।
- जिसमें नाना प्रकार की अनेकों मूर्तियों तथा सर्प-शरीर के चिह्न होते हैं, वह भगवान अनन्त की प्रतिमा है।
- दामोदर की मूर्ति स्थूलकाय एवं नीलवर्ण की होती है। उसके मध्य भाग में चक्र का चिह्न होता है। भगवान दामोदर नील चिह्न से युक्त होकर संकर्षण के द्वारा जगत की रक्षा करते हैं।जिसका वर्ण लाल है, तथा जो लम्बी-लम्बी रेखा, छिद्र, एक चक्र और कमल आदि से युक्त एवं स्थूल है, उस शालिग्राम को ब्रह्मा की मूर्ति समझनी चाहिये।
- जिसमें बृहत छिद्र, स्थूल चक्र का चिह्न और कृष्ण वर्ण हो, वह श्रीकृष्ण का स्वरूप है। वह बिन्दुयुक्त और बिन्दुशून्य दोनों ही प्रकार का देखा जाता है।
- हयग्रीव मूर्ति अंकुश के समान आकार वाली और पाँच रेखाओं से युक्त होती है।
- भगवान वैकुण्ठ कौस्तुभ मणि धारण किये रहते हैं। उनकी मूर्ति बड़ी निर्मल दिखायी देती है। वह एक चक्र से चिह्नित और श्याम वर्ण की होती है।
- मत्स्य भगवान की मूर्ति बृहत कमल के आकार की होती है। उसका रंग श्वेत होता है तथा उसमें हार की रेखा देखी जाती है।
- जिस शालिग्राम का वर्ण श्याम हो, जिसके दक्षिण भाग में एक रेखा दिखायी देती हो तथा जो तीन चक्रों के चिह्न से युक्त हो, वह भगवान श्री रामचन्द्रजी का स्वरूप है, वे भगवान सबकी रक्षा करनेवाले हैं।
- द्वारकापुरी में स्थित शालिग्राम स्वरूप भगवान गदाधर। भगवान गदाधर एक चक्र से चिह्नित देखे जाते हैं।
- लक्ष्मीनारायण दो चक्रों से, त्रिविक्रम तीन से, चतुर्व्यूह चार से, वासुदेव पाँच से, प्रद्युम्न छ: से, संकर्षण सात से, पुरुषोत्तम आठ से, नवव्यूह नव से, दशावतार दस से, अनिरुद्ध ग्यारह से और द्वादशात्मा बारह चक्रों से युक्त होकर जगत की रक्षा करते हैं। इससे अधिक चक्र चिह्न धारण करने वाले भगवान का नाम अनन्त है।
गंडकी नदी में भगवान विष्णु का वास
शिवपुराण के अनुसार, भगवान विष्णु ने खुद ही गंडकी नदी में अपना वास बताया था और कहा था कि गंडकी नदी के तट पर मेरा (भगवान विष्णु का) वास होगा। नदी में रहने वाले करोड़ों कीड़े अपने तीखे दांतों से काट-काटकर उस पाषाण में मेरे चक्र का चिह्न बनाएंगे और इसी कारण इस पत्थर को मेरा रूप मान कर उसकी पूजा की जाएगी।
शालिग्राम शिला में विष्णु का वास
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शालिग्राम शिला में विष्णु का निवास होता है। इस संबंध में अनेक पौराणिक कथाएं आज भी प्रचलित हैं। इन्हीं कथाओं में से एक के अनुसार जब भगवान शिव जालंधर नामक असुर से युद्ध नहीं जीत पा रहे थे तो भगवान विष्णु ने उनकी मदद की थी। कथाओं में कहा गया है कि जब तक असुर जालंधर की पत्नी वृंदा ‘तुलसी’ अपने सतीत्व को बचाए रखती तब तक जालंधर को कोई पराजीत नहीं कर सकता था। ऐसे में भगवान विष्णु ने जालंधर का रूप धारण करके वृंदा के सतीत्व को नष्ट करने में सफल हो गए। जब वृंदा को इस बात का अहसास हुआ तबतक काफी देर हो चुकी थी। इससे दुखी वृंदा ने भगवान विष्णु को कीड़े-मकोड़े बनकर जीवन व्यतीत करने का शाप दे डाला। फलस्वरूप कालांतर में शालिग्राम पत्थर का निर्माण हुआ, जो हिंदू धर्म में आराध्य हैं। पुरानी दंतकथाओं के अनुसार मुक्तिक्षेत्र वह स्थान है जहां पर मोक्ष की प्राप्ति होती है। यहीं पर भगवान विष्णु शालिग्राम पत्थर में निवास करते हैं।
अन्य कथाओं में वृंदा, शंखचूड़ राक्षस की पत्नी थी लेकिन भगवान विष्णु को पति रूप में पाने के लिए उपासना तन मन से किया करती थी। भगवान विष्णु उसके मन की बात जानते थे, इसलिये छल से उसके पति शंखचूड़ रुप में बनने का अभिनय किया तो वृन्दा रुष्ट हो गई और उन्होंने विष्णु को शाप दिया कि वे पत्थर बन जाएं क्योंकि आपने छल से मेरे पति का रूप धरा है। भगवान विष्णु ने तुलसी का श्राप स्वीकार कर लिया और कहा कि तुम धरती पर गंडकी नदी तथा तुलसी के पौधे के रूप में रहोगी। तदनोपरांत वृंदा उस शरीर को त्याग स्वयं गंडकी नदी में बदल गई तथा पत्थर बने भगवान विष्णु को अपने हृदय में धारण कर लिया। धर्म ग्रंथों के अनुसार, एक समय पर #तुलसी ने भगवान विष्णों को अपने पति के रूप में पाने के लिए कई सालों तक तपस्या की थीं, जिसके फलस्वरूप भगवान ने उसे विवाह का वरदान दिया था। जिसे देवप्रबोधिनी एकादशी पर पूरा किया जाता है। देवप्रबोधिनी एकादशी के दिन शालिग्राम शिला तथा तुलसी के पौधा का विवाह करवाने की परंपरा है।