ऐसे हुआ था हनुमान जी का जन्म, उनकी माता थी एक श्रापित अप्सरा
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम भक्त हनुमान जी के बारे में कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। पुराणों में हनुमान जी को वानर रूप में बताया गया है। हनुमान जी की माता का नाम अंजनी और पिता का नाम केसरी था। हनुमान जी की माता इंद्र के दरबार में अप्सरा थीं और उनका नाम पुंजिकस्थल था। कहा जाता है कि वह असाधारण सुंदरता की थी और बहुत चंचल भी।
एक बार अपने चंचल स्वभाव के कारण उन्होंने एक तेजस्वी ऋषि की तपस्या भंग कर दी। तपस्या भंग होते ही ऋषि ने उसे श्राप दे दिया कि वह अगले जन्म में वानर बनेगी। तब पुंजिकस्थल के होश उड़ गए। उन्होंने ऋषि से क्षमा मांगी और उनसे अपना श्राप वापस लेने को कहा। बार-बार प्रार्थना करने पर ऋषि को उस पर दया आ गई।
ऋषि ने कहा – हे कन्या, श्राप कभी भी वापस नहीं लिया जा सकता, लेकिन इसके साथ ही मैं तुम्हें वरदान देता हूं कि तुम्हारा वानर रूप भी अनुपम होगा और तुम परम बलशाली पुत्र को जन्म दोगी। भगवान शिव आपके गर्भ में पलेंगे। इस प्रकार पुंजिकस्थल को एक पराक्रमी और दिव्य पुत्र की माता होने का वरदान प्राप्त था।
इधर, इंद्रदेव ने पुंजिकस्थल को उदास देखा तो इसका कारण पूछा। पुंजिकस्थल ने भगवान इंद्र को सब कुछ बताया। इंद्र ने उससे कहा कि इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए उसे पृथ्वी पर जन्म लेना चाहिए और वहीं अपने पति से मिलना चाहिए। जैसे ही वह शिव के अवतार को जन्म देगी, उसे श्राप से मुक्ति मिल जाएगी।
तत्पश्चात, पुंजिकस्थल ने अंजनी के नाम से पृथ्वी पर जन्म लिया। एक दिन अंजनी जंगल में शिकार कर रही थी, तभी उसकी भेंट एक शक्तिशाली और दिव्य युवक से हुई, जो निहत्थे शेर से लड़ रहा था।
अंजनी उस युवक के पराक्रम पर मोहित हो गई। लेकिन जैसे ही उस युवक की नजर अंजनी पर पड़ी उसका चेहरा भी बंदर जैसा हो गया। यह देख अंजनी जोर-जोर से रोने लगी। तब उक्त वानर ने कहा कि मैं कोई और नहीं वानरराज केसरी हूं। इसके बाद केसरी और अंजनी का विवाह हो गया।
विवाह के काफी समय बीत जाने के बाद भी जब अंजनी मां नहीं बन सकीं तो चिंतित होकर मतंग ऋषि से मिलीं। अंजनी की सारी बातें सुनकर मुनि ने कहा कि अंजनी को नारायण पर्वत के समीप स्वामी तीर्थ में जाकर कठोर तपस्या करनी चाहिए, तभी उसे पुत्र-रत्न की प्राप्ति होगी। 12 साल तक सिर्फ हवा में रहे। तब पवन देवता ने अंजनी को वरदान दिया और कहा कि तुम्हारे गर्भ से एक महान पुत्र उत्पन्न होगा जो सूर्य और अग्नि के समान तेजस्वी और वेदों और वेदों को जानने वाला होगा। लेकिन अब आपको भगवान शिव के यहां घोर तपस्या करनी होगी। इसके बाद वह भगवान शिव की घोर तपस्या में लीन हो गईं।
अंत में, जब भगवान शिव अंजनी की तपस्या से प्रसन्न हुए और उनसे वरदान मांगने को कहा, तो अंजनी ने उन्हें बताया कि कैसे उन्हें ऋषि के श्राप से छुटकारा पाने के लिए शिव के एक अवतार को जन्म देना होगा। तथास्तु कहकर शिव जी अंतर्ध्यान हो गए।
उसी समय अयोध्या के राजा दशरथ अपनी तीनों पत्नियों कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा के साथ श्रृंगी ऋषि से पुत्र-रत्न की प्राप्ति के लिए पुत्र कामेष्टि यज्ञ कर रहे थे। यज्ञ की समाप्ति पर स्वयं अग्निदेव ने प्रकट होकर श्रृंगी ऋषि को एक सोने के पात्र में खीर का पात्र (कटोरा) दिया और कहा- ऋषि यह खीर तीनों रानियों को खिला दो, उनकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी।
लेकिन तभी एक चिड़िया खीर का एक हिस्सा छीन कर उड़ गई। वह खीर घोर तपस्या कर रही अंजनी के हाथ लग गई। अंजनी ने इसे भगवान का प्रसाद समझकर खा लिया। प्रसाद खाने के बाद अंजनी माता गर्भवती हो गईं। अंत में अंजनी माता के गर्भ से हनुमान जी का जन्म हुआ।
हनुमान जी को जन्म देने के बाद अंजनी फिर से अप्सरा बनकर इंद्रलोक चली गईं और इस तरह हनुमान जी को जन्म देकर वे माता अंजनी के रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुई थीं।