अमर शहीद तिलका मांझी, ब्रिटिश सत्ता को चुनौती देने वाले पहले आदिवासी
भारत में ब्रिटिश सत्ता को चुनौती देने वाले पहले लोकप्रिय आदि विद्रोही तिलका मांझी (Tilka Manjhi) पहाड़िया समुदाय के वीर आदिवासी थे I उनका जन्म 11 फ़रवरी 1750 ई. में बिहार (Bihar) के भागलपुर (Bhagalpur) जिले के सुल्तानगंज तहसील (Sultanganj Tehsil) में स्थित तिलकपुर (Tilakpur) ग्राम में एक संथाल परिवार में हुआ था I
भारत में ब्रिटिश सत्ता को चुनौती देने वाले पहले लोकप्रिय आदि विद्रोही तिलका मांझी (Tilka Manjhi) पहाड़िया समुदाय के वीर आदिवासी थे I उनका जन्म 11 फ़रवरी 1750 ई. में बिहार (Bihar) के भागलपुर (Bhagalpur) जिले के सुल्तानगंज तहसील (Sultanganj Tehsil) में स्थित तिलकपुर (Tilakpur) ग्राम में एक संथाल परिवार में हुआ था I इनके पिता का नाम ‘सुंदरा मुर्मू’ था I
बचपन से ही थे निडर
बचपन से ही जंगली जीवन के अभ्यस्त हो जाने के कारण वे निडर और वीर बन गये थे I किशोर जीवन से ही अपने परिवार तथा जाति पर उन्होंने अंग्रेज़ी सत्ता का अत्याचार देखा था I गरीब आदिवासियों की भूमि, कृषि और जंगली वृक्षों पर अंग्रेज़ी शासकों ने कब्जा कर रखा था I आदिवासियों और पहाड़ी सरदारों की लड़ाई अक्सर अंग्रेज़ी सत्ता से होती रहती थी पर पहाड़ी जमींदार वर्ग अंग्रेज़ी सत्ता का खुलकर साथ देता था I यह सब देखकर तिलका मांझी के मन में अंग्रेजों के प्रति रोष पैदा हुआ और उन्होंने उनका विरोध करने का निर्णय लिया I
अंततः एक दिन 1771 में तिलका मांझी ने भागलपुर में ‘बनैचारी जोर’ नामक स्थान से अंग्रेज़ों के विरुद्ध विद्रोह शुरू कर दिया। जंगल, तराई तथा गंगा, ब्रह्मी आदि नदियों की घाटियों में तिलका मांझी अपनी सेना लेकर अंग्रेज़ी सरकार के सैनिक अफसरों के साथ लगातार संघर्ष करते-करते मुंगेर, भागलपुर, संथाल परगना के पर्वतीय इलाकों में छिप-छिप कर लड़ाई लड़ते रहे इन्होंने 1778 ई. में पहाड़िया सरदारों से मिलकर रामगढ़ कैंप पर कब्जा करने वाले अंग्रेजों को खदेड़ कर कैंप को मुक्त कराया I
ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध लंबी लड़ाई लड़ी
1771 से 1784 तक उन्होंने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध लंबी लड़ाई लड़ी और स्थानीय महाजनों-सामंतों व अंग्रेजी शासकों की नींद उड़ाए रखाI वे अंग्रेज़ सैनिकों से मुकाबला करते-करते भागलपुर की ओर बढ़ गए I स्थिति प्रतिकूल देख ब्रिटिश सरकार ने ऑगसत्स क्लीवलैंड को मजिस्ट्रेट बनाकर राजमहल भेजा I क्लीवलैंड ने ब्रिटिश सेना और पुलिस के साथ धावा बोला I पर क्लीव लैंड को तिलका माँझी ने 13 जनवरी, 1784 को अपने तीरों से मार गिराया I इस घटना ने ब्रिटिश अधिकारियों में भय उत्पन्न कर दिया I
तिलका मांझी विश्वासघात के शिकार हुए
एक रात तिलका मांझी और उनके क्रान्तिकारी साथी, जब एक उत्सव में नाच-गाने की उमंग में खोए थे, तभी अचानक एक गद्दार सरदार जाउदाह ने उन पर आक्रमण कर दिया I अनेकों देशभक्त शहीद हुए और कुछ बंदी बनाए गए I तिलका मांझी ने वहां से भागकर सुल्तानगंज के पर्वतीय अंचल में शरण ली I तिलका मांझी एवं उनकी सेना को अब पर्वतीय इलाकों में छिप-छिपकर संघर्ष करना कठिन जान पड़ा और उन्होंने छापामार पद्धति अपनाई I आयरकूट के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना का तिलका की गुरिल्ला सेना पर जबरदस्त हमला हुआ जिसमें कई लड़ाके मारे गए और मांझी को गिरफ्तार कर लिया गया I
उन्हें चार घोड़ों से बांधकर घसीटते हुए भागलपुर लाया गया, पर मीलों घसीटे जाने के बावजूद वह पहाड़िया लड़ाका जीवित था खून में डूबी उसकी देह तब भी गुस्सैल थी और उसकी लाल-लाल आंखें ब्रितानी राज को डरा रही थी I भयाक्रांत अंग्रेजों ने तब भागलपुर के चौराहे पर स्थित एक विशाल वटवृक्ष पर सरेआम लटका कर उनकी जान ले ली I
13 जनवरी 1785 को हजारों की भीड़ के सामने तिलका मांझी हंसते-हंसते फांसी पर झूल गए। बाद में आजादी के हजारों लड़ाकों ने मांझी का अनुसरण किया और फांसी पर चढ़ते हुए जो गीत गाए – हांसी-हांसी चढ़बो फांसी …! – वह आज भी हमें इस आदिविद्रोही की याद दिलाते हैं I
तिलका मांझी ऐसे प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने भारत को ग़ुलामी से मुक्त कराने के लिए अंग्रेज़ों के विरुद्ध सबसे पहले आवाज़ उठाई थी और उनकी वही आवाज़ 90 वर्ष बाद 1857 के महाविद्रोह में पुनः फूट पड़ी थी Iज्ञानपीठ पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, रेमन मैग्सेसे पुरस्कार प्रभृति से सम्मानित बांग्ला की सुप्रसिद्ध लेखिका एवं सामजिक कार्यकर्त्ता महाश्वेता देवी ने तिलका मांझी के जीवन और विद्रोह पर बांग्ला भाषा में ‘शालगिरार डाके’ नामक उपन्यास की रचना की I
हिंदी के उपन्यासकार राकेश कुमार सिंह ने अपने उपन्यास ‘हूल पहाड़िया’ में तिलका मांझी को जबरा पहाड़िया के रूप में चित्रित किया है I तिलका मांझी के नाम पर भागलपुर में स्थित भागलपुर विश्वविद्यालय को तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय कर दिया गया I उनकी स्मृति में भागलपुर में कचहरी के निकट उनकी प्रतिमा स्थापित की गई है I झारखण्ड के दुमका में भी उनकी प्रतिमा स्थापित की गई है Iयद्यपि तिलका मांझी का विद्रोह अंग्रेजों द्वारा दबा दिया गया पर यह बाद में पुनः अन्य आदिवासी विद्रोहों, 1857 के स्वतंत्रता-संघर्ष एवं परवर्ती निर्णायक संग्राम के लिए प्रेरणादायक सिद्ध हुआ I
विदेशी शासन के विरुद्ध उनका संघर्ष देशभक्तिपूर्ण एवं प्रगतिशील कार्यवाही थी I तिलका भारत के उस राष्ट्रीय मुक्ति आन्दोलन के प्रेरणाश्रोत बन गए, जिसने वह हासिल कर दिखाया जिसका सपना तिलका ने देखा था I तिलका अपने समकालीन लोगों से बहुत आगे थे I अपनी निःस्वार्थ देशभक्ति, दुर्जेय साहस और दृढ़ निश्चय द्वारा तिलका ने भारत के स्वतंत्रता इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ दिया I बिहार को अपने इस सपूत पर गर्व है, पूरे भारत को इस देशभक्त पर अभिमान है I