पदोन्नति का अधिकार संवैधानिक नहीं
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नति के अधिकार को लेकर एक अपील दायर की गई थी, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डी.वाई. चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच ने सभी सरकारी कर्मचारियों को पदोन्नति का अधिकार देने की अपील पर सुनवाई के बाद बड़ा फैसला सुनाया। शीर्ष अदालत ने कहा कि पदोन्नति का अधिकार संवैधानिक अधिकार नहीं है। संविधान के किसी हिस्से में इस अधिकार का उल्लेख नहीं है। कोर्ट ने आगे कहा कि कर्मचारियों की पदोन्नति के संबंध में नियम और कानून बनाने का अधिकार कार्यपालिका (केंद्र के मामले में संसद और राज्यों के मामले में राज्य विधानसभा) को है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि सरकारी कर्मचारियों की पदोन्नति के संबंध में संविधान में कोई नियम नहीं है। सीजेआई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने कहा, “भारत में सरकारी कर्मचारियों के लिए पदोन्नति का अधिकार जैसा कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है। केंद्र और राज्य कार्यपालिका पद या आवश्यकता के अनुसार नियम और कानून लागू करने के लिए पूरी तरह जिम्मेदार हैं।”
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कर्मचारी को पदोन्नति देने के लिए नियम और कानूनी प्रावधानों से विधायिका और कार्यपालिका निपटती है। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि वह पदोन्नति चयन के लिए नीति की पर्याप्तता की समीक्षा नहीं करेगा। कार्य के प्रकार और अन्य रोजगार-संबंधी नियमों के आधार पर किस कर्मचारी को पदोन्नति देनी है, यह तय करने का एकमात्र अधिकार विधायिका और कार्यपालिका को है। इस तरह की अपीलों पर केवल भारतीय संविधान के अनुच्छेद 16 (सरकारी कार्यालयों में सभी के लिए समान अवसर) के तहत विचार किया जा सकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रत्येक कर्मचारी के साथ समान व्यवहार किया जाए।
सीजेआई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने वरिष्ठता-सह-योग्यता और योग्यता-सह-वरिष्ठता की अवधारणा के बारे में भी बात की। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कर्मचारियों की पदोन्नति अनुभव के आधार पर की जाती है क्योंकि यह उम्मीद की जाती है कि अधिक अनुभव वाला कर्मचारी काम की तकनीकों से बेहतर ढंग से लैस होगा। यह प्रणाली कार्यस्थल पर भाई-भतीजावाद के मुद्दे को रोकने में भी मदद करती है।