यहीं पर सूर्य देव चतुर्भुज नारायण के रूप में गर्भगृह में स्थापित हैं
झालरापाटन का दिल, जिसे कभी राजस्थान में ‘झलरोन शहर’ के रूप में जाना जाता था, यहां का सूर्य मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण नौवीं शताब्दी में हुआ था। यह मंदिर अपनी प्राचीनता और स्थापत्य वैभव के लिए प्रसिद्ध है। कर्नल जेम्स टॉड ने इस मंदिर को चतुर्भुज (चतुरभज) मंदिर माना है। वर्तमान में मंदिर के गर्भगृह में चतुर्भज नारायण की मूर्ति विराजमान है।
11वीं शताब्दी के बाद सूर्य मंदिर शैली में बने ‘शांतिनाथ जैन मंदिर’ को देखकर पर्यटक सूर्य मंदिर में जैन मंदिर को लेकर भ्रमित हो जाते हैं। लेकिन चतुर्भुज नारायण की स्थापित मूर्ति, भारतीय स्थापत्य कला का शिखर और मंदिर की रथ शैली का आधार, ये सभी सूर्य मंदिर को निर्विवाद रूप से प्रमाणित करते हैं।
वरिष्ठ इतिहासकार बलवंत सिंह हाड़ा द्वारा सूर्य मंदिर में मिले शोधपरक शिलालेख के अनुसार झालरापाटन के इस मंदिर का निर्माण नागभट्ट द्वितीय ने संवत् 872 (9वीं शताब्दी) में करवाया था।
झालरापाटन का यह विशाल सूर्य मंदिर, पद्मनाथजी मंदिर, बड़ा मंदिर, सात दोस्तों का मंदिर आदि कई नामों से प्रसिद्ध है। मंदिर खजुराहो और कोणार्क शैली में बना है। इस शैली का विकास 10वीं से 13वीं शताब्दी ई. के मध्य हुआ। रथ शैली में बना यह मंदिर इसी मान्यता को पुष्ट करता है। भगवान सूर्य सात घोड़ों वाले रथ पर विराजमान हैं।
मंदिर की आधारशिला सात घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाले रथ से मेल खाती है। मंदिर के अंदर शिखर स्तंभ और मूर्तियों में उत्कीर्णन वास्तुकला की चरम परिणति को देखकर देखने वाला आश्चर्य करने लगता है।
शिल्प सौन्दर्य की दृष्टि से मंदिर की बाहरी एवं भीतरी मूर्तियाँ स्थापत्य कला की चरम ऊँचाइयों को छूती हैं। मंदिर का ऊपर की ओर मुख वाला कलात्मक अष्टकोणीय कमल बहुत ही सुंदर, जीवंत और आकर्षक है। मंदिर के ऊपर की ओर स्थित अष्टकोणीय कमल को आठ पत्थरों को मिलाकर इस कलात्मक तरीके से उकेरा गया है, मानो यह मंदिर कोई कमल का फूल हो।
मंदिर का आसमान छूती सबसे ऊंची चोटी 97 फीट ऊंची है। मंदिर में अन्य उपशिखर भी हैं। शिखरों के कलश एवं गुम्बद अत्यंत आकर्षक हैं। गुम्बदों की आकृति देखकर मुगल काल की वास्तुकला और स्थापत्य याद आ जाता है।
पूरे मंदिर को बाहरी और भीतरी भागों में विभाजित किया गया है जैसे तोरण द्वार, मंडप, निज मंदिर, गर्भगृह आदि। मंदिर के जीर्ण-शीर्ण झंडों का समय-समय पर जीर्णोद्धार और फहराया गया है। पुराणों में भगवान सूर्यदेव की चतुर्भुज नारायण के रूप में पूजा की गई है।
राजस्थान गजेटियर झालावाड़ के अनुसार भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, भारत सरकार द्वारा संरक्षित महत्वपूर्ण स्मारकों की सूची में सूर्य (पद्मनाथ) मंदिर का प्रथम स्थान है।
सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग द्वारा प्रकाशित संदर्भ पुस्तकों ‘राजस्थान झालावाड़ दर्शन’ तथा ‘जिला झालावाड़ प्रगति के तीन वर्ष’ में सूर्य मंदिर को ‘पद्मनाथ’ तथा ‘सात मित्रों का मंदिर’ कहा गया है।
वहीं, राजस्थान के ‘पर्यटन एवं सांस्कृतिक विभाग’ द्वारा प्रकाशित ‘राजस्थान दर्शन एवं गाइड’ में इस प्राचीन मंदिर को झालरापाटन शहर का प्रमुख आकर्षण केन्द्र माना गया है। इसे भारत में सबसे अच्छी और सुरक्षित सूर्य मूर्ति के रूप में मान्यता दी गई है।