जानें विघ्नहर्ता भगवान श्रीगणेश के नामों की विचित्र कथाएं
भगवान श्रीगणेश (ShriGanesh) को विघ्नहर्ता (Vighnaharta), मंगलमूर्ति (Mangalmurti), लंबोदर (Lambodar) व्रकतुंड (Vakratunda) आदि कई विचित्र नामों से पुकारा जाता है। जितने विचित्र इनके नाम हैं उतनी विचित्र इनसे जुड़ी कथाएं भी हैं। अनेक धर्म ग्रंथों में भगवान श्रीगणेश की कथाओं का वर्णन मिलता है। भगवान श्रीगणेश से जुड़ी कुछ जग प्रसिद्ध कथाएं यहां प्रस्तुत है।
शिवमहापुराण के अनुसार माता पार्वती को श्रीगणेश का निर्माण करने का विचार उनकी सखियां जया और विजया ने दिया था। जया-विजया ने पार्वती से कहा था कि नंदी आदि सभी गण सिर्फ महादेव की आज्ञा का ही पालन करते हैं। अत: आपको भी एक गण की रचना करनी चाहिए जो सिर्फ आपकी आज्ञा का पालन करे। इस प्रकार विचार आने पर माता पार्वती ने श्रीगणेश की रचना अपने शरीर के मैल से की।
शिवमहापुराण के अनुसार श्रीगणेश के शरीर का रंग लाल और हरा है। श्रीगणेश को जो दूर्वा चढ़ाई जाती है वह जडऱहित, बारह अंगुल लंबी और तीन गांठों वाली होना चाहिए। ऐसी 101 या 121 दूर्वा से श्रीगणेश की पूजा करना चाहिए।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार माता पार्वती ने पुत्र प्राप्ति के लिए पुण्यक नाम व्रत किया था, इसी व्रत के फलस्वरूप भगवान श्रीकृष्ण पुत्र रूप में माता पार्वती को प्राप्त हुए।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार जब सभी देवता श्रीगणेश को आशीर्वाद दे रहे थे तब शनिदेव सिर नीचे किए हुए खड़े थे। पार्वती द्वारा पुछने पर शनिदेव ने कहा कि मेरे द्वारा देखने पर आपके पुत्र का अहित हो सकता है लेकिन जब माता पार्वती के कहने पर शनिदेव ने बालक को देखा तो उसका सिर धड़ से अलग हो गया।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार जब शनि द्वारा देखने पर माता पार्वती के पुत्र का मस्तक कट गया तो भगवान श्रीहरि गरूड़ पर सवार होकर उत्तर दिशा की ओर गए और पुष्पभद्रा नदी के तट पर हथिनी के साथ सो रहे एक गजबालक का सिर काटकर ले आए। उस गजबालक का सिर श्रीहरि ने माता पार्वती के मस्तक विहिन पुत्र के धड़ पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार एक बार किसी कारणवश भगवान शिव ने क्रोध में आकर सूर्य पर त्रिशूल से प्रहार किया। इस प्रहार से सूर्यदेव चेतनाहीन हो गए। सूर्यदेव के पिता कश्यप ने जब यह देखा तो उन्होंने क्रोध में आकर शिवजी को शाप दिया कि जिस प्रकार आज तुम्हारे त्रिशूल से मेरे पुत्र का शरीर नष्ट हुआ है, उसी प्रकार तुम्हारे पुत्र का मस्तक भी कट जाएगा। इसी श्राप के फलस्वरूप भगवान श्रीगणेश के मस्तक कटने की घटना हुई।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार एक बार तुलसीदेवी गंगा तट से गुजर रही थी, उस समय वहां श्रीगणेश भी तप कर रहे थे। श्रीगणेश को देखकर तुलसी का मन उनकी ओर आकर्षित हो गया। तब तुलसी ने श्रीगणेश से कहा कि आप मेरे स्वामी हो जाइए लेकिन श्रीगणेश ने विवाह करने से इंकार कर दिया। क्रोधवश तुलसी ने श्रीगणेश को विवाह करने का श्राप दे दिया और श्रीगणेश ने तुलसी को वृक्ष बनने का।
शिवमहापुराण के अनुसार श्रीगणेश का विवाह प्रजापति विश्वरूप की पुत्रियों सिद्धि और बुद्धि से हुआ है। श्रीगणेश के दो पुत्र हैं इनके नाम क्षेत्र तथा लाभ हैं।
शिवमहापुराण के अनुसार जब भगवान शिव त्रिपुर का नाश करने जा रहे थे तब आकाशवाणी हुई कि जब तक आप श्रीगणेश का पूजन नहीं करेंगे तब तक तीनों पुरों का संहार नहीं कर सकेंगे। तब भगवान शिव ने भद्रकाली को बुलाकर गजानन का पूजन किया और युद्ध में विजय प्राप्त की।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, एक बार परशुराम जब भगवान शिव के दर्शन करने कैलाश पहुंचे तो भगवान ध्यान में थे। तब श्रीगणेश ने परशुरामजी को भगवान शिव से मिलने नहीं दिया। इस बात से क्रोधित होकर परशुरामजी ने फरसे से श्रीगणेश पर वार कर दिया। वह फरसा स्वयं भगवान शिव ने परशुराम को दिया था।
श्रीगणेश उस फरसे का वार खाली नहीं होने देना चाहते थे इसलिए उन्होंने उस फरसे का वार अपने दांत पर झेल लिया, जिसके कारण उनका एक दांत टूट गया। तभी से उन्हें एकदंत भी कहा जाता है।
स्कंद पुराण के अनुसार, एक समय जब माता पार्वती मानसरोवर में स्नान कर रही थी तब उन्होंने स्नान स्थल पर कोई आ न सके इस हेतु अपनी माया से गणेश को जन्म देकर ‘बाल गणेश’ को पहरा देने के लिए नियुक्त कर दिया। इसी दौरान भगवान शिव उधर आ जाते हैं। गणेशजी उन्हें रोक कर कहते हैं कि आप उधर नहीं जा सकते हैं।
यह सुनकर भगवान शिव क्रोधित हो जाते हैं और गणेश जी को रास्ते से हटने का कहते हैं किंतु गणेश जी अड़े रहते हैं तब दोनों में युद्ध हो जाता है। युद्ध के दौरान क्रोधित होकर शिवजी बाल गणेश का सिर धड़ से अलग कर देते हैं।
शिव के इस कृत्य का जब पार्वती को पता चलता है तो वे विलाप और क्रोध से प्रलय का सृजन करते हुए कहती है कि तुमने मेरे पुत्र को मार डाला। माता का रौद्र रूप देख शिव एक हाथी का सिर गणेश के धड़ से जोड़कर गणेश जी को पुन:जीवित कर देते हैं। तभी से भगवान गणेश को गजानन गणेश कहा जाने लगा।
महाभारत का लेखन श्रीगणेश ने किया है, ये बात तो सभी जानते हैं लेकिन महाभारत लिखने से पहले उन्होंने महर्षि वेदव्यास के सामने एक शर्त रखी थी इसके बारे में कम ही लोग जानते हैं।
शर्त इस प्रकार थी कि श्रीगणेश ने महर्षि वेदव्यास से कहा था कि यदि लिखते समय मेरी लेखनी क्षणभर के लिए भी न रूके तो मैं इस ग्रंथ का लेखक बन सकता हूं। तब महर्षि वेदव्यास जी ये शर्त मान ली और श्रीगणेश से कहा कि मैं जो भी बोलूं आप उसे बिना समझे मत लिखना।
तब वेदव्यास जी बीच-बीच में कुछ ऐसे श्लोक बोलते कि उन्हें समझने में श्रीगणेश को थोड़ा समय लगता। इस बीच महर्षि वेदव्यास अन्य काम कर लेते थे।
पद्मपुराण के अनुसार, पूर्वकाल में पार्वती देवी को देवताओं ने अमृत से तैयार किया हुआ एक दिव्य मोदक दिया। मोदक देखकर दोनों बालक (कार्तिकेय तथा गणेश) माता से माँगने लगे।
तब माता ने मोदक के महत्व का वर्णन कर कहा कि तुममें से जो धर्माचरण के द्वारा श्रेष्ठता प्राप्त करके सर्वप्रथम सभी तीर्थों का भ्रमण कर आएगा, उसी को मैं यह मोदक दूँगी। माता की ऐसी बात सुनकर कार्तिकेय ने मयूर पर आरूढ़ होकर मुहूर्तभर में ही सब तीर्थों का स्नान कर लिया।
इधर गणेश जी का वाहन मूषक होने के कारण वे तीर्थ भ्रमण में असमर्थ थे। तब गणेशजी श्रद्धापूर्वक माता-पिता की परिक्रमा करके पिताजी के सम्मुख खड़े हो गए। यह देख माता पार्वतीजी ने कहा कि समस्त तीर्थों में किया हुआ स्नान, सम्पूर्ण देवताओं को किया हुआ नमस्कार, सब यज्ञों का अनुष्ठान तथा सब प्रकार के व्रत, मन्त्र, योग और संयम का पालन- ये सभी साधन माता-पिता के पूजन के सोलहवें अंश के बराबर भी नहीं हो सकते।
इसलिए यह गणेश सैकड़ों पुत्रों और सैकड़ों गणों से भी बढ़कर है। अतः यह मोदक मैं गणेश को ही अर्पण करती हूँ। माता-पिता की भक्ति के कारण ही इसकी प्रत्येक यज्ञ में सबसे पहले पूजा होगी।
गणेश पुराण के अनुसार छन्दशास्त्र में 8 गण होते हैं- मगण, नगण, भगण, यगण, जगण, रगण, सगण, तगण। इनके अधिष्ठाता देवता होने के कारण भी इन्हें गणेश की संज्ञा दी गई है। अक्षरों को गण भी कहा जाता है। इनके ईश होने के कारण इन्हें गणेश कहा जाता है, इसलिए वे विद्या-बुद्धि के दाता भी कहे गए हैं।
जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन। करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन
भावार्थ: जिन्हें स्मरण करने से सब कार्य सिद्ध होते हैं, जो गणों के स्वामी और सुंदर हाथी के मुख वाले हैं, वे ही बुद्धि के राशि और शुभ गुणों के धाम (श्री गणेशजी) मुझ पर कृपा करें॥