होलिका दहन पर भद्रा की छाया, जानिए पूजा विधि और शुभ मुहूर्त
भद्रा काल में होलिका दहन को अशुभ माना जाता है। ज्योतिषों ने बताया कि इस समय 23 फरवरी से 24 मार्च तक गुरु तारा अस्त होने से विवाह, गृह प्रवेश, नींव, देव प्रतिष्ठा आदि शुभ कार्य बंद हैं। अब इसी बीच 10 मार्च से होलाष्टक भी लग गया है, जो कि 18 मार्च तक रहेगा।
होलिका दहन के दिन 17 मार्च को फाल्गुनी पूर्णिमा पर भद्रा का साया रहेगा। इस कारण दहन गोधूलि बेला में नहीं होगा। विद्वानों के अनुसार, होलिका दहन के लिए भद्रा काल के दौरान सिर्फ एक घंटा दस मिनट का वक्त मिलेगा। 18 तारीख को उदयकालिन तिथि फाल्गुन पूर्णिमा ही रहेगी। इसी तिथि को धुलंडी होगी।
शुभ मुहूर्त
ज्योतिषों ने बताया कि 17 मार्च की दोपहर 1.23 बजे से रात 1.18 बजे तक भद्रा रहेगी। इस बीच भद्रा का पुच्छ काल रात 9.03 से रात 10.13 बजे तक रहेगा। इसके चलते शाम के समय गोधूलि बेला में भद्रा का प्रभाव होने से होलिका का दहन नहीं किया जा सकता। भद्रा योग को शास्त्रों में अशुभ माना गया है। रक्षाबंधन और होली के त्योहार पर भद्रा दोष का विचार किया जाता है। इस बार जब भद्रा पुच्छ काल में रहेगी उस समय होलिका दहन करना श्रेष्ठ होगा। माना जाता है कि पुच्छ काल में भद्रा का प्रभाव कम हो जाता है। भद्रा के समाप्त होने के बाद रात 1.23 बजे के बाद होलिका दहन किया जा सकता है। वहीं, 18 मार्च को सूर्योदय 6:02 होने पर पूर्णिमा भोग करेगी, जबकि 19 मार्च की सुबह प्रतिपदा तिथि का मान मिलेगा। ऐसे में उदयातिथि में प्रतिपदा होने पर रंगभरी होली का महापर्व 19 मार्च को मनाया जाएगा लेकिन कुछ जगहों पर 18 मार्च को भी रंगों का त्योहार मनाया जाएगा।
इस कारण है अशुभ
होली की कथा के अनुसार, भद्रा काल में होलिका दहन को अशुभ माना जाता है। ज्योतिषों ने बताया कि इस समय 23 फरवरी से 24 मार्च तक गुरु तारा अस्त होने से विवाह, गृह प्रवेश, नींव, देव प्रतिष्ठा आदि शुभ कार्य बंद हैं। अब इसी बीच 10 मार्च से होलाष्टक भी लग गया है, जो कि 18 मार्च तक रहेगा। वहीं, दो साल से कोरोना के कारण लोग होली का त्योहार नहीं मना पाए थे टी इस बार कोरोना की रफ्तार कम होने के कारण लोग इस बार त्योहार जमकर मनाने के मूड में हैं।
पूजा विधि और सामग्री
सामग्री : एक लोटा जल, गाय के गोबर से बनी माला, अक्षत, गन्ध, पुष्प, माला, रोली, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल और गेंहू की बालियां।
सभी पूजन सामग्री को एक थाली में रख लें साथ में जल का लोटा भी रखें। पूजा स्थल पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह करके बैठ जाएं। उसके बाद पूजा थाली पर और अपने आप पानी छिड़कें और ‘ऊँ पुण्डरीकाक्ष: पुनातु’ मंत्र का तीन बार जाप करें। अब अपने दाएं हाथ में जल, चावल, फूल और एक सिक्का लेकर संकल्प लें। फिर दाहिने हाथ में फूल और चावल लेकर गणेश जी का स्मरण करें। गणेश पूजा के बाद देवी अंबिका का स्मरण करें और ‘ऊँ अम्बिकायै नम: पंचोपचारार्थे गंधाक्षतपुष्पाणि सर्मपयामि’ मंत्र का जाप करें।
मंत्र का जाप करते हुए फूल पर रोली और चावल लगाकर देवी अंबिका को सुगंध सहित अर्पित करें। इसके बाद अब भगवान नरसिंह का स्मरण करें। मंत्र का जाप करते हुए फूल पर रोली और चावल लगाकर भगवान नरसिंह को अर्पित करें। इसके बाद अब भक्त प्रह्लाद का स्मरण करें। फूल पर रोली और चावल लगाकर भक्त प्रह्लाद को चढ़ाएं।
इसके बाद होलिका के आगे खड़े हो जाएं और हाथ जोड़कर प्रार्थना करें। होलिका में चावल, धूप, फूल, मूंग दाल, हल्दी के टुकड़े, नारियल और गाय के गोबर से बनी माला जिसे बड़कुला या गुलारी भी कहते हैं, को होलिका में अर्पित करें। अब होलिका की परिक्रमा करते हुए उसके चारों ओर कच्चे सूत की तीन, पांच या सात फेरे बांधे। इसके बाद होलिका के ढेर के सामने लोटे के जल को पूरा अर्पित कर दें।
तत्पश्चात होलिका दहन किया जाता है और लोग होलिका के चक्कर लगाते हैं। जिसके बाद बड़ों का आशीर्वाद लिया जाता है। लोग होलिका की परिक्रमा करते हैं और अलाव में नई फसल चढ़ाते हैं और भूनते हैं। भुने हुए अनाज को होलिका प्रसाद के रूप में खाया जाता है।
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