विष्णु अवतार परशुराम व शिव अवतार हनुमानजी समेत ये 7 अब भी हैं जीवित!

सनातन धर्म में किसी भी पूजा के वक्त एक श्लोक बोला जाता है- वह है अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमानश्च विभीषण:। कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:॥ सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्। जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।। अर्थात् अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य और भगवान परशुराम ये सभी चिरंजीवी हैं, इन्हें नमस्कार है। यह दुनिया का एक आश्चर्य है।

सनातन धर्म में किसी भी पूजा के वक्त एक श्लोक बोला जाता है- वह है अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमानश्च विभीषण:। कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:॥ सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्। जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।

अर्थात् अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य और भगवान परशुराम ये सभी चिरंजीवी हैं, इन्हें नमस्कार है।

यह दुनिया का एक आश्चर्य है। विज्ञान इसे नहीं मानेगा। योग और आयुर्वेद कुछ हद तक इससे सहमत हो सकता है, लेकिन जहां हजारों वर्षों की बात हो तो फिर योगाचार्यों के लिए भी शोध का विषय होगा। इसका दावा नहीं किया जा सकता और इसके किसी भी प्रकार के सबूत नहीं है। यह आलौकिक है। किसी भी प्रकार के चमत्कार से इंकार ‍नहीं किया जा सकता। सिर्फ शरीर बदल-बदलकर ही हजारों वर्षों तक जीवित रहा जा सकता है। यह संसार के सात आश्चर्यों की तरह है।

हिंदू इतिहास और पुराण अनुसार ऐसे सात व्यक्ति हैं, जो चिरंजीवी हैं। यह सब किसी न किसी वचन, नियम या शाप से बंधे हुए हैं और यह सभी दिव्य शक्तियों से संपन्न है। योग में जिन अष्ट सिद्धियों की बात कही गई है वे सारी शक्तियां इनमें विद्यमान है। यह परामनोविज्ञान जैसा है, जो परामनोविज्ञान औरटेलीपैथी विद्या जैसी आज के आधुनिक साइंस की विद्या को जानते हैं वही इस पर विश्वास कर सकते हैं। आइए जानते हैं कि हिंदू धर्म के अनुसार कौन से हैं यह सात जीवित महामानव।

बलि : राजा बलि के दान के चर्चे दूर-दूर तक थे। देवताओं पर चढ़ाई करने राजा बलि ने इंद्रलोक पर अधिकार कर लिया था। बलि सतयुग में भगवान वामन अवतार के समय हुए थे। राजा बलि के घमंड को चूर करने के लिए भगवान ने ब्राह्मण का भेष धारण कर राजा बलि से तीन पग धरती दान में मांगी थी। राजा बलि ने कहा कि जहां आपकी इच्छा हो तीन पैर रख दो। तब भगवान ने अपना विराट रूप धारण कर दो पगों में तीनों लोक नाप दिए और तीसरा पग बलि के सर पर रखकर उसे पाताल लोक भेज दिया।

परशुराम : परशुराम राम के काल के पूर्व महान ऋषि रहे हैं। उनके पिता का नाम जमदग्नि और माता का नाम रेणुका है। पति परायणा माता रेणुका ने पांच पुत्रों को जन्म दिया, जिनके नाम क्रमशः वसुमान, वसुषेण, वसु, विश्वावसु तथा राम रखे गए। राम की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें फरसा दिया था, इसीलिए उनका नाम परशुराम हो गया। भगवान पराशुराम राम के पूर्व हुए थे, लेकिन वे चिरंजीवी होने के कारण राम के काल में भी थे। भगवान परशुराम विष्णु के छठवें अवतार हैं। इनका प्रादुर्भाव वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हुआ, इसलिए उक्त तिथि अक्षय तृतीया कहलाती है। इनका जन्म समय सतयुग और त्रेता का संधिकाल माना जाता है।

हनुमान : अंजनी पुत्र हनुमान को भी अजर अमर रहने का वरदान मिला हुआ है। यह त्रेता युग में भगवान राम के परम भक्त रहे हैं। हजारों वर्षों बाद वे महाभारत काल में भी नजर आते हैं। महाभारत में प्रसंग हैं कि भीम उनकी पूंछ को मार्ग से हटाने के लिए कहते हैं तो हनुमानजी कहते हैं कि तुम ही हटा लो लेकिन भीम अपनी पूरी ताकत लगाकर भी उनकी पूंछ नहीं हटा पाता है।

विभीषण : रावण के छोटे भाई विभीषण। जिन्होंने राम की नाम की महिमा जपकर अपने भाई के विरु‍द्ध लड़ाई में उनका साथ दिया और जीवनभर राम नाम जपते रहें।

ऋषि व्यास : महाभारतकार व्यास ऋषि पराशर एवं सत्यवती के पुत्र थे, ये सांवले रंग के थे तथा यमुना के बीच स्थित एक द्वीप में उत्पन्न हुए थे। ये अपने सांवले रंग के कारण ‘कृष्ण’ तथा जन्मस्थान के कारण ‘द्वैपायन’ कहलाए। इनकी माता ने बाद में शान्तनु से विवाह किया, जिनसे उनके दो पुत्र हुए, जिनमें बड़ा चित्रांगद युद्ध में मारा गया और छोटा विचित्रवीर्य संतानहीन मर गया। कृष्ण द्वैपायन ने धार्मिक तथा वैराग्य का जीवन पसंद किया, किन्तु माता के आग्रह पर इन्होंने विचित्रवीर्य की दोनों सन्तानहीन रानियों द्वारा नियोग के नियम से दो पुत्र उत्पन्न किए जो धृतराष्ट्र तथा पाण्डु कहलाए, इनमें तीसरे विदुर भी थे। व्यासस्मृति के नाम से इनके द्वारा प्रणीत एक स्मृतिग्रन्थ भी है। भारतीय वांड्मय एवं हिन्दू-संस्कृति व्यासजी की ऋणी है।

अश्वत्थामा : अश्वथामा गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र हैं। अश्वत्थामा के माथे पर अमरमणि है और इसीलिए वह अमर हैं, लेकिन अर्जुन ने वह अमरमणि निकाल ली थी। ब्रह्मास्त्र चलाने के कारण कृष्ण ने उन्हें शाप दिया था कि कल्पांततक तुम इस धरती पर जीवित रहोगे, इसीलिए अश्वत्थामा सात चिरन्जीवियों में गिने जाते हैं। माना जाता है कि वे आज भी जीवित हैं तथा अपने कर्म के कारण भटक रहे हैं। उत्तराखंड, हरियाणा के कुरुक्षेत्र एवं अन्य तीर्थों में यदा-कदा उनके दिखाई देने के दावे किए जाते रहे हैं। मध्यप्रदेश के बुरहानपुर के किले में उनके दिखाई दिए जाने की घटना भी प्रचलित है।

कृपाचार्य : शरद्वान् गौतम के एक प्रसिद्ध पुत्र हुए हैं कृपाचार्य। कृपाचार्य अश्वथामा के मामा और कौरवों के कुलगुरु थे। शिकार खेलते हुए शांतनु को दो शिशु प्राप्त हुए। उन दोनों का नाम कृपी और कृप रखकर शांतनु ने उनका लालन-पालन किया। महाभारत युद्ध में कृपाचार्य कौरवों की ओर से सक्रिय थे।

इन सात चिरंजीवियों के साथ ही ऋषि मार्कंडेय का भी अमर माना जाता है। इसलिए आठवें चिरंजीवी हैं ऋषि मार्कंडेय। वे अल्पायु थे। उन्होंने महामृत्युंजय मंत्र की रचना की और तप करके शिवजी को प्रसन्न किया।

मार्कंडेय कम आयु के थे, शिवजी की कृपा से चिरंजीवी हो गए। कहा तो यह भी जाता है कि जब प्रलय आती है और पूरी दुनिया डूबने लगती है तो शास्त्रों, औषधियों, फसलों के बीज आदि महत्वपूर्ण चीजों को लेकर ऋषि मार्कंडेय नौका में बैठ जाते हैं और प्रलयकाल खत्म होने के बाद इन्हें फिर से संसार में स्थापित करते हैं। यही कारण है कि सभी धर्म-शास्त्रों में लिखा मिलता है-मार्कंडेय उवाच, यानी जैसा मार्कंडेय ऋषि ने कहा।

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