तमिलनाडु के ततंजौर शहर में स्थित भगवान शिव का प्रसिद्ध बृहदेश्वर मंदिर है। 1000 साल पुराने बृहदेश्वर मंदिर को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल सूची में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है। यह दुनिया का पहला और एकमात्र मंदिर है जो पूरी तरह से ग्रेनाइट पत्थरों से बना है। बृहदेश्वर मंदिर को बृहदेश्वर मंदिर और राजराजेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। बृहदेश्वर मंदिर, भारत के सबसे बड़े मंदिरों में से एक है, जिसका निर्माण चोल सम्राट राजराजा चोल प्रथम ने सपने में दिव्य प्रेरणा प्राप्त करने पर किया था। मंदिर का निर्माण 1003-1010 ईस्वी के बीच हुआ था। यह मंदिर 13 मंजिला ऊंचा है और इसकी ऊंचाई 66 मीटर है। यह मंदिर 16 फीट ऊंचे कंक्रीट के चबूतरे पर बना है। मंदिर में लगे शिलालेखों के अनुसार, मंदिर के मुख्य वास्तुकार कुंजर मल्लन राजराजा पेरुन्थाचन थे, जिनके परिवार के सदस्य आज भी वास्तुशास्त्र, वास्तुकला का काम करते हैं।
चोल शासकों ने इस मंदिर का नाम राजराजेश्वर रखा लेकिन तंजौर पर हमला करने वाले मराठा शासकों ने इस मंदिर का नाम बृहदीश्वर रखा। इस मंदिर के देवता भगवान शिव हैं। मुख्य मंदिर के अंदर 12 फीट ऊंचा शिवलिंग स्थापित है। यह द्रविड़ वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
मुख्य मंदिर और गोपुरम निर्माण की शुरुआत यानी 11वीं शताब्दी के हैं। तब से मंदिर का कई बार पुनर्निर्माण, जीर्णोद्धार और मरम्मत की गई है। मुगल शासकों द्वारा युद्ध और आक्रमण और तोड़फोड़ के कारण मंदिर क्षतिग्रस्त हो गया था। बाद में जब हिंदू राजाओं ने फिर से इस क्षेत्र पर विजय प्राप्त की तो उन्होंने इस मंदिर की मरम्मत करवाई और कुछ अन्य निर्माण कार्य भी करवाए। बाद में राजाओं ने मंदिर की दीवारों पर पुराने चित्रों को फिर से रंगवाकर उसका सौंदर्यीकरण किया।
भगवान कार्तिकेय का मंदिर (मुरुगन स्वामी), देवी पार्वती का मंदिर (अम्मान) और नंदी की मूर्ति का निर्माण नायक राजाओं ने 16-17वीं शताब्दी में करवाया था। मंदिर में संस्कृत भाषा और तमिल भाषा में कई शिलालेख भी खुदे हुए हैं।
बृहदेश्वर मंदिर वास्तुकला का अद्भुत नमूना है। मंदिर को इस तरह से बनाया गया है कि गुंबद की छाया जमीन पर नहीं पड़ती। इसके शिखर पर लगे पत्थर कुंबम का वजन 80 टन है, जो एक ही पत्थर को काटकर बनाया गया है। 80 टन वजनी पत्थर को मंदिर के शिखर तक कैसे पहुंचाया गया यह आज तक रहस्य बना हुआ है। ऐसा माना जाता है कि 1.6 किलोमीटर लंबा एक रैंप बनाया गया था, जिस पर इंच-इंच करके इसे मंदिर के शीर्ष पर ले जाया गया था।
इस मंदिर को बनाने में 130,000 टन पत्थर का इस्तेमाल किया गया है। इतना बड़ा मंदिर बनने में रिकॉर्ड 7 साल का समय लगा है। आखिर कितने लोगों को इस काम में लगाया गया और उस जमाने में तकनीक कैसी थी कि निर्माण इतने कम समय में हो गया जो आज भी संभव नहीं है। इसका मतलब यह नहीं है कि मंदिर के निर्माण में कोई कमी या गलती हुई थी। इस अद्भुत मंदिर ने 6 बड़े भूकंप झेले हैं, लेकिन इसे किसी तरह का नुकसान नहीं हुआ।
मंदिर के अंदर गोपुरम में स्थापित नंदी की विशाल मूर्ति भी एक अनूठा आश्चर्य है। नंदी की यह मूर्ति 16 फीट लंबी, 8.5 फीट चौड़ी और 13 फीट ऊंची है और इसका वजन 20,000 किलोग्राम है। खास बात यह है कि मूर्ति को एक ही पत्थर से तराश कर बनाया गया है। यह भारत में नंदी की दूसरी सबसे बड़ी प्रतिमा है।
बृहदीश्वर मंदिर का अधिकांश भाग कठोर ग्रेनाइट पत्थर से बना है और शेष भाग बलुआ पत्थर की चट्टानों से बना है। ग्रेनाइट पत्थर का निकटतम स्रोत मंदिर से 60 किमी की दूरी पर स्थित है।
आखिर इतनी बड़ी मात्रा और इतने बड़े आकार के पत्थरों को इतनी लंबी दूरी से मंदिर निर्माण स्थल पर कैसे लाया गया, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। मंदिर के आसपास कोई पहाड़ भी नहीं है, जिससे पत्थर ले जाने की संभावना हो।
ग्रेनाइट की चट्टानें इतनी कठोर होती हैं कि उन्हें काटने के लिए विशेष हीरे के टुकड़े वाले औजारों का इस्तेमाल करना पड़ता है। उस काल में आधुनिक उपकरणों के बिना मंदिर में शिलाओं को तराश कर कितनी बारीक, कलात्मक मूर्तियां बनाई गई होंगी, यह आज तक आश्चर्य का विषय बना हुआ है।
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