जानिए, भगवान शिव के जन्म से जुड़े रहस्य

भगवान शिव (Lord Shiva) को स्वयंभू कहा जाता है। जिसका अर्थ है कि वह अजन्मे हैं। शिव न आदि हैं और न अंत, भोलेनाथ(Bholenath) को अजन्मा और अविनाशी कहा जाता है। आखिर शिव जी के जन्म से जुड़ा रहस्य क्या है- पुराणों में देवाधिदेव महादेव शिव शंकर को प्रथम स्थान प्राप्त है।

भगवान शिव (Lord Shiva) को स्वयंभू कहा जाता है। जिसका अर्थ है कि वह अजन्मे हैं। शिव न आदि हैं और न अंत, भोलेनाथ(Bholenath) को अजन्मा और अविनाशी कहा जाता है। आखिर शिव जी के जन्म से जुड़ा रहस्य क्या है-

पुराणों में देवाधिदेव महादेव शिव शंकर को प्रथम स्थान प्राप्त है। प्रजापिता ब्रह्मा को सृजनकर्ता, जगतपालक भगवान विष्णु को संरक्षक और भगवान शिव विनाशक की भूमिका निभाते हैं। कहा जाता है कि यही त्रिदेव मिलकर प्रकृति का संचालन-निर्माण, पालक और संहार करते हुए संकेत देते हैं कि जो उत्पन्न हुआ है, उसका विनाश भी होना तय है।

इन त्रिदेव की उत्पत्ति खुद एक रहस्य है। कई पुराणों का मानना है कि ब्रह्माजी और जगतपालक भगवान विष्णुजी की उत्पत्ति शिव से ही हुई हैं, परंतु शिवभक्तों के मन में सदैव यह सवाल उठता है कि आखिर भगवान शिव ने कैसे जन्म लिया था ?

कहा जाता है कि भगवान शिव स्वयंभू है, जिसका अर्थ है कि वह मानव शरीर से पैदा नहीं हुए हैं। जब कुछ नहीं था तो भगवान शिव थे और सब कुछ नष्ट हो जाने के बाद भी उनका अस्तित्व सदैव रहेगा। भगवान शिव को आदिदेव भी कहा जाता है, जिसका अर्थ हिंदू माइथोलॉजी में सबसे पुराने देव से है और वह देवों में प्रथम हैं।

भगवान शिव के जन्म के संबंध में एक कहानी शास्त्रों में वर्णित है। एक बार ब्रह्माजी और भगवान विष्णुजी के बीच एक बार इस बात को लेकर बहस हुई, हम दोनों में बड़ा व सर्वश्रेष्ठ कौन हैं। तभी महादेव ने दोनों की परीक्षा लेने के लिए स्वंय एक रहस्यमयी खंभा का रूप ले लिया। खंभे का ओर-छोर दिखाइ नहीं दे रहा था, तभी ब्रह्माजी और विष्णुजी को एक आकाशवाणी सुनाई दी, जिसमें उन्हें खंभे का पहला और आखिरी छोर ढूंढने के लिए कहा गया ।

इसके बाद ब्रह्माजी ने तुरंत एक पक्षी का रूप धारण किया और खंभे के ऊपरी हिस्से की खोज करने निकल पड़े और भगवान विष्णुजी ने वराह का रूप धारण किया और खंभे के आखिरी छोर को ढूंढने निकल पड़े। दोनों ने बहुत प्रयास किए लेकिन असफल रहे। जब दोनों ने हार मान ली तो भगवान शिव जो कि विशाल खंभे के रूप में थे अपने वास्तविक रूप में प्रकट हो गए। तब ब्रह्मा जी और विष्णुजी ने माना कि इस सकल ब्रह्माण्ड को एक सर्वोच्च महाशक्ति चला रही है और वह महाशक्ति स्वयंभू भगवान महादेव शिव ही हैं। खंभा प्रतीक रूप में भगवान शिव के कभी न खत्म होने वाले स्वरूप ही बाद में शिवलिंग के रूप में पूजा जाने लगा ऐसी पौराणिक कथा हैं

भगवान शिव के जन्म के विषय में इस कथा के अलावा और भी कई कथाएं हैं। शिव जी के ग्यारह अवतार माने जाते हैं और इन अवतारों की कथाओं में रुद्रावतार की कथा प्रमुख मानी जाती है। कूर्म पुराण के अनुसार जब सृष्टि को उत्पन्न करने में ब्रह्माजी को कठिनाई होने लगी और रोते हुए उन्होंने देवाधिदेव महादेव को पुकारा तो ब्रह्मा जी के आंसुओं से भूत-प्रेतों का जन्म हुआ और मुख से रुद्र उत्पन्न हुए। रूद्र भगवान शिव के अंश और भूत-प्रेत उनके गण यानी सेवक माने जाते हैं। इस प्रकार शिव की कृपा से सृष्टि का निर्माण हुआ।

शिव पुराण के अनुसार, भगवान शिव को स्वयंभू (स्वयं उत्पन्न) हुआ माना गया है, शिव पुराण के अनुसार, एक बार जब भगवान शिव अपने टखने पर अमृत मल रहे थे तब उससे भगवान श्री विष्णुजी पैदा हुए बताए गए हैं। संहारक कहे जाने वाले भगवान शिव एक बार देवों की रक्षा करने हेतु जहर पी लिया था और नीलकंठ कहलाए। कहा जाता है कि भोलेबाबा भगवान शिव अपने भक्तों पर प्रसन्न हो जाएं तो मन की सारी मनोकामनाएं पूरी कर देते हैं। ऐसे है भोलेबाबा महादेव।

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *